Poems

||समय||

हर बात की याद दिलाता, ऐसा क्यों है तू?

हर जज़्बात की कद्र करवाता, ऐसा क्यों है तू?

तू गुज़रा तो ज़रूर है, हो जैसे पानी की धारा..

पर तेरे गुज़रे हुए हर पल से मैं क्यों हूँ बेबस और हारा..

साथ तो निभाया है मेरा, तूने मेरे जनम से..

तो हर रोज़ आने वाले पल की खामोशी, क्यों जुडी है मेरे पतन से?..

समय है तू, तू आखिर किसका वफ़ादार हुआ है! ..

तू बस गुजरता रहा और हर दीवाना तेरे मायुसी में गिरफ्तार हुआ है…

यहाँ दौड़ती ज़िन्दगी में हर पल्खें भीगी क्यों है?..

तेरा मुझसे किया वादा सभ ठीक करनेका था, पर तेरी मेरे मौत से बन्दगी क्यों है? ….


||बेबसी||

कैसा यह आलम है और कैसा इसका अंत है…

कैसी यह बेबसी है मेरी, पतझड़ से मेरे सारे बसंत है…

यारी, दोस्ती, रिश्ते-नाते, सभ ने कुछ ऐसा निभाया है मेरा साथ…

कर्म सारे उनके दानव से, पर रूप में सारे संत है…


||बात||

बात थी फरेब की, बेवफाई की…

क्यों जाने से पहले तूने ना कोई सफाई दी?..

वजह तेरी जुदाई का, मेरे वजूद से जुदा है अभ…

बात नहीं थी हमारे मिलने की, हम बिछड़े कैसे? यही पूछते है मुझसे सभ…

साथ ऐसा था हमारा की, एक दूजे की खुशबू भी पहचान लेते थे…

पर अभ आलम ऐसा है की, एक दूजे के अक्स से भी अनजान रहते है! …


||छलावा||

कभ तक तेरी कहानियों को सच मानता चलूँगा…

तेरी नादानियाँ, तेरी मासूमियत, को यूंही तालता रहूँगा…

साँसें तो चल रही थी, दिल भी धड़क रहा था…

तेरे आने से सीखा है जीना, आखिर कभ तक इस छलावे में जीता रहूँगा…


 

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